उस बाबुल को मार के ठोकर
एक पिता अपनी पुत्री को बड़े ही लाड और प्यार से पालते हैं पर वही पुत्री जब बड़ी हो जाती है तो दुनिया के चकाचौंध में आकर अपने पिता की मान सम्मान को ठोकर मार कर कहीं दूर किसी और के साथ भाग जाती है, इसी कहानी पर है यह कविता अगर अच्छी लगे लाइक और शेयर अवश्य करें !
बाबुल की बगिया में जब तू,
बनके कली खिली,
तुमको क्या मालूम की,
उनको कितनी खुशी मिली,
उस बाबुल को मार के ठोकर,
घर से भाग जाती हो,
जिसका प्यारा हाथ पकड़ कर,
तुम पहली बार चली,
◆ इसे 👇भी पढ़िए
तूने निष्ठुर बन भाई की,
राखी को कैसे भुलाया,
घर से भागते वक़्त क्या,
माँ का आँचल याद न आया,
तेरे गम में बाप हलक से,
कौर निगल ना पाया,
अपने स्वार्थ के खातिर,
तूने घर में मातम फैलाया,
वो प्रेमी भी क्या प्रेमी,
जो तुम्हें भागने को उकसाये,
वो दोस्त भी क्या दोस्त,
जो तेरे यौवन पे ललचाये,
ऐसे तन के लोभी तुझको,
कभी भी सुख ना देंगे,
उलटे तुझसे ही तेरा,
सुख चैन सभी हर लेंगें,
सुख देने वालो को यदि,
तुम दुःख देकर जाओगी,
तो तुम भी अपने जीवन में,
सुख कहाँ से पाओगी,
अगर माँ बाप को अपने,
तुम ठुकरा कर जाओगी,
तो जीवन के हर मोड पर,
तुम ठोकर ही खाओगी,
जो - जो भी गई भागकर,
ठोकर खाती आई हैं,
अपनी गलती पर,
रो-रोकर अश्क बहाई हैं,
एक ही किचन में,
रोटी के संग साग पकाती हैं,
हुईं भयानक भूल,
सोचकर यह पछताती हैं
◆ इसे 👇भी पढ़िए
रहना सदा ही जिन्दा,
तेरे कारण माँ बाप को,
ना होना पड़े शर्मिन्दा
यदि भाग गई घर से तो,
वे जीते जी मर जाएंगे,
तू उनकी बेटी हैं यह,
सोच सोच पछताएगें,
तू उनकी बेटी हैं यह,
सोच सोच पछताएगें !!
"धन्यवाद"
एक पिता अपनी पुत्री को बड़े ही लाड और प्यार से पालते हैं पर वही पुत्री जब बड़ी हो जाती है तो दुनिया के चकाचौंध में आकर अपने पिता की मान सम्मान को ठोकर मार कर कहीं दूर किसी और के साथ भाग जाती है, इसी कहानी पर है यह कविता अगर अच्छी लगे लाइक और शेयर अवश्य करें !
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उस बाबुल को मार के ठोकर |
बाबुल की बगिया में जब तू,
बनके कली खिली,
तुमको क्या मालूम की,
उनको कितनी खुशी मिली,
उस बाबुल को मार के ठोकर,
घर से भाग जाती हो,
जिसका प्यारा हाथ पकड़ कर,
तुम पहली बार चली,
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तूने निष्ठुर बन भाई की,
राखी को कैसे भुलाया,
घर से भागते वक़्त क्या,
माँ का आँचल याद न आया,
तेरे गम में बाप हलक से,
कौर निगल ना पाया,
अपने स्वार्थ के खातिर,
तूने घर में मातम फैलाया,
वो प्रेमी भी क्या प्रेमी,
जो तुम्हें भागने को उकसाये,
वो दोस्त भी क्या दोस्त,
जो तेरे यौवन पे ललचाये,
ऐसे तन के लोभी तुझको,
कभी भी सुख ना देंगे,
उलटे तुझसे ही तेरा,
सुख चैन सभी हर लेंगें,
सुख देने वालो को यदि,
तुम दुःख देकर जाओगी,
तो तुम भी अपने जीवन में,
सुख कहाँ से पाओगी,
अगर माँ बाप को अपने,
तुम ठुकरा कर जाओगी,
तो जीवन के हर मोड पर,
तुम ठोकर ही खाओगी,
जो - जो भी गई भागकर,
ठोकर खाती आई हैं,
अपनी गलती पर,
रो-रोकर अश्क बहाई हैं,
एक ही किचन में,
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रहना सदा ही जिन्दा,
तेरे कारण माँ बाप को,
ना होना पड़े शर्मिन्दा
यदि भाग गई घर से तो,
वे जीते जी मर जाएंगे,
तू उनकी बेटी हैं यह,
सोच सोच पछताएगें,
तू उनकी बेटी हैं यह,
सोच सोच पछताएगें !!
"धन्यवाद"
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